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कविता

मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ

पेर लागरकविस्त

अनुवाद - सरिता शर्मा


मेरा दोस्त अजनबी है जिसे मैं नहीं जानता हूँ।
दूर बहुत दूर एक अजनबी,
उसके लिए मेरा दिल बेचैनी से भरा है
क्योंकि वह मेरे साथ नहीं है।
क्योंकि शायद, उसका अस्तित्व ही नहीं है, ।
तुम कौन हो जो अपनी अनुपस्थिति से मेरा दिल भर देते हो?
जो पूरी दुनिया को अपनी अनुपस्थिति से भर देते हो?
तुम जो मौजूद थे, पहाड़ों और बादलों से पूर्व,
समुद्र और हवाओं से पूर्व।
तुम जिसकी शुरुआत सब चीजों की शुरुआत से पहले है,
और जिसकी खुशी और गम सितारों से ज्यादा पुराने हैं।
तुम जो अनंत काल से सितारों की आकाशगंगा
और उनके बीच के घोर अँधेरे से होते हुए
घूमे हो।
तुम जो अकेलेपन से पहले अकेले थे,
और कोई मानव हृदय मुझे भुलाये,
उससे पहले से जिसका दिल बेचैनी से भरा था।
पर तुम मुझे कैसे याद कर सकते हो?
भला समुद्र भी सीप को याद करता है?
एक बार उमड़ जाने के बाद।


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